*मनुष्य शरीर बहुत दुर्लभ है । इसकी देवता भी आस करते हैं , क्योंकि इसी शरीर में नये कर्म करने की योग्यता है , देवशरीर में नहीं , क्योंकि वह भोगयोनि है , कर्मयोनि नहीं। इसलिये इस शरीर से इसमें शक्ति रहते हुए जप - तप - दान - धर्म व हरिनाम का उपार्जन कर लेना चाहिए । क्योंकि जो मनुष्य इसके स्वस्थ रहते हुए यह सब नहीं कर पाता , वह बाद में बहुत पछताता है।* *स पश्चात तप्यते मूढो , मृतो गत्वात्मनो गतिम् ।। क्योंकि मृत्यु के बाद जब उसे यमराज से भगवान के विमुख रहने का फल मिलता है । तब उसे अपनी भूलों पर बहुत पश्चाताप होता है , काश ! मैंने अक्ल का सदुपयोग किया होता ।* *महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से जी प्रश्न किये हैं - उनमें से एक प्रश्न यह भी है , कि इस सृष्टि का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? तो वहाँ युधिष्ठिर ने उत्तर में यही कहा है -- कि* *अहन्य हनि भूतानि गच्छन्ति यम मंदिरम्* *शेषा स्थिरत्व मिच्छन्ति किम आश्चर्य मतः परम् ।।* *इससे बडा आश्चर्य क्या होगा , कि यहां हर मनुष्य प्रतिदिन सैकड़ों लोगों को यमलोक जाते हुए देखता है , फिर भी जो पीछे बचे रहते हैं , वे उससे कोई सबक नहीं लेते , और सदा के लिए यहीं टिके रहने के उपाय खोजते रहते हैं । ऐसे लोग स्वयं को अमर मानकर भोग विषयों में ही डूबे रहते हैं , भगवान का स्मरण नहीं करते , इससे बड़ा आश्चर्य भला और क्या हो सकता है ?* *संसार में मनुष्य को लौकिक पदार्थों की प्राप्ति तो कर्म से हो जाती ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और राष्ट्रीय हिन्दू संगठन से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇 https://kutumbapp.page.link/dQSBZVTUNYy9nvCB7
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